मदर टेरेसा का जीवन परिचय

मदर टेरेसा 

आप कभी न कभी किसी अस्पताल में नर्सिंग होम मैं अवश्य गए होंगे वहाँ आपने यह ध्यान दिया होगा कि किस तरह कुछ लोग रोगियों तथा पीड़ितों की सेवा करते हैं ऐसे जैसे आप में भी दूसरों के लिए कुछ कर पाने की इच्छा जगाते होंगे अपनों की सेवा तो सभी करते हैं और बड़ी बात तो तब है जब दूसरों के लिए कुछ किया जाए दूसरों के लिए कुछ करने की भावना से भरे लोग जाति क्षेत्र भाषा धर्म लिंग में रंग आदि के बंधन को नहीं मानते वह तो बस यह मानते हैं कि मनुष्य मनुष्य में भेद कैसा मनुष्य तो मनुष्य है और कुछ हो ही नहीं सकता आज हम इस लेख के जरिए या माध्यम से ऐसी ही भावना रखने वाले लोगों के विषय में जानने एवं उनसे प्रेरणा देने का प्रयास करते हैं 

 इस नर्सिंग होम में लेखक अपने किसी जानकार को बीमार होने पर इलाज के लिए लेकर जाता है यहीं पर उनसे पहली बार मदर टेरेसा और क्रिस हैल्ड देखा लेखक इन दोनों के रुप-सौंदर्य तथा रोगियों के प्रति इन की आत्मीयता और सेवा भावना से बहुत प्रभावित प्रेरित हुआ इसके साथ ही लेखक यह व्यक्त करता है कि मानवता की सेवा करने वालों का हृदय एक होता है वह मनुष्य मनुष्य के बीच खड़ी की गई दीवारो को ढहा देते हैं इस अंश में इन बातों का ऐसा वर्णन किया गया है मानव पाठक के सामने प्रत्यक्ष घटित हो रहा हो
मदर टेरेसा का नाम तो आप सब जानते ही हैं लंबे कद गोरे रंग वाली टेरेसा सफेद साड़ी पहने मां की मूर्ति जैसी दिखती थी लेखक ने जब इस नर्सिंग होम में मदर को देखा उस समय मदर की आयु लगभग 45 वर्ष की होगी लेखक ने मदर टेरेसा के रोग्रस्त वातावरण में आने और उनकी उम्र और प्रभावशाली व्यक्तित्व का आंखों देखा वर्णन किया है
 मदद नहीं चाहती थी कि कोई रोग  तथा अन्य कष्ट हमारे समाज में बचे रहें मदर ने इनमें से एक क्षेत्र चुन लिया वे
रोगियों की सेवा करने लगी मदर जब किसी को कुछ कहते तो वह किसी तानाशाह अधिकारी का आदेश में होता बल्कि सहृदय मां की ममता उनमें झलकती थी जैसे कभी आप की मां भी आपको डाँटती होंगी पर उनसे डाँट में उनका स्नेह समाया होता है जैसे आप अपनी मां के स्पर्श मात्र से खुश हो जाते वैसे ही मदर टेरेसा के स्पर्श लोग अपनी पीड़ा भूल कर हंसने लगते थे एक स्थान पर मदर टेरेसा के स्पर्श के प्रभाव का उल्लेख किया गया है कष्ट से रोग ग्रस्त रोगियों को मदर्स का स्पर्श मात्र ठंडक पहुंचा देता है तथा पीड़ितों को खुश देखने के लिए उन्होंने अपना सारा जीवन लगा दिया से बच्चे को जन्म दिया बिना भी किसी नारी में इतना ममत्व व इतनी  करुणा हो सकती है यह मदर टेरेसा को देखकर पता चलती है सारा संसार उन्हें मां कहता है क्योंकि टेरेसा के लिए सभी उनके अपने बच्चे थे चाहे उन्होंने किसी संतान को जन्म दिया हो पर उनके लिए संतान की कमी नहीं थी और संतान भी
केसी जैसे मां की ओर से ज्यादा जरूरत हो नर्सिंग होम में लेखक ने मानव सेवा समर्पित एक और महिला को देखा वह भी बहुत आकर्षक थी ऐसा रूप जैसे कोई देवी को जर्मनी में जन्मी क्रिस हैल्ड भी मदर टेरेसा के साथ ही रॉबर्ट नर्सिंग होम में रोगियों की नि: स्वार्थ भाव से सेवा करती थी और  क्रिस हैल्ड का भी वर्णन शब्दों में यह चित्रण किया गया है आपका ध्यान गया होगा।
 हम सब जानते हैं कि द्वितीय विश्व युद्ध के समय जर्मनी और  फ्रांस  एक दूसरे के धोर विरुद्ध थे। दोनों एक दूसरे के विरूद्ध लडे भी थे। लेखक को इस बात पर थोड़ा  आश्चर्य होता है कि फ्रांस की मदर टेरेसा और जर्मनी की कैसेट क्रिस हैल्ड एक साथ एक कर्म के लिए मानव सेवा में लीन थी लेकिन हम यह जानते हैं कि त्याग तपस्वी निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग प्रत्येक देश में होते हैं जर्मनी में हिटलर ने ही जन्म नहीं लिया ,विश्व का भला करने वाले वैज्ञानिकों दार्शनिको,चिकित्सकों आदि ने वहाँ जन्म लिया है मानवता की सेवा करने वाली क्रिस हैल्ड भी वहां की है इसलिए लेखक क्रिस हैल्ड से कहता है तुम्हारा देश महान है जो युद्ध के देवता हिटलर को भी जन्म दे सकता है और तुम्हारे जैसी सेवाशील बालिका को भी लेखक मदर के साथ थोड़ी चुटकी लेता है
मदर के साथ लेखक की यह बातचीत बहुत रोचक है साथ ही हमें प्रेरणा भी देती है कभी कभी हमें यह गलतफहमी हो जाती है कि यदि दो देशों के बीच राजनीतिक संबंध ठीक नहीं हो तो उनकी जनता के बीच के संबंध भी खराब हो जाते हैं ऐसा नहीं होता है रॉबर्ट नर्सिंग होम में फ्रांस की मदद से और  जर्मनी की क्रिस हैल्ड एक होकर काम करके मदर के साथ लेखक के इस संवाद को पड़ी अपने कामरूप के जादू की कहानियां सुनी होगी कामरूप असम में है वहां के बारे में कहानियां पर चली थी कि जो वहां बाहर से जाता था उसे मक्खी कुत्ता बिल्ली आदि बना कर छोड़ दिया जाता था ऐसा जादू किस काम का लेखक के अनुसार जादू तो मदद मार्गरेट करती है जो अनुकरण करने लायक है मदर का जादू मक्खियां जैसा जीवन बिताने वाले लोगों को वास्तविक मनुष्य बनाने का जादू है जानते हैं कि मक्खियों जैसा जीवन बिताने का क्या है इसका अर्थ यह बीमारी से ग्रस्त जीवन ऐसे ही लोगों की सेवा करके मनुष्य बनाने का काम मार्गरेट कर रही है रॉबर्ट नर्सिंग होम को कहा है क्योंकि यहां मदर टैरेसा मार्गरेट है जो रोगियों की सेवा करके उनके जीवन सुधार रही है इसी अस्पताल में एक और अमीर रोगी आया जिसने कभी कोई दुख नहीं देखा था वह बहुत तड़प रहा था यहां पर लेखक थोड़ा व्यंग किया है  अमीरों पर है जो अपने छोटे से कष्ट को बहुत बढ़ा चढ़ाकर देखते दूसरे के भयानक कष्ट उन्हें नहीं दिखाई देते वैसे सुख दुख कभी यह देखकर नहीं आता कि कौन कितना सह सकता है अगर ऐसा होता तो छोटे मासूम बच्चे और कमजोर तक वृद्धि कभी दुखी नहीं होते ।
मार्गरेट ने उन्हें समझाया कि अभी कष्ट है फिर धीरे-धीरे कम हो जाएगा बहुत थोड़े दिनों में बिल्कुल खत्म हो जाएगा यह दुख कष्ट अगर आया है तो थोड़ा बहुत तो उसे सहना ही पड़ता है हमें भी चोट लगती है तो हम उसका उपचार करते हैं और थोड़े दिनों में ठीक हो जाते हैं दुख सुख तो आते जाते रहते हैं हमें कष्ट के कारण निराश नहीं होना चाहिए यहां पर एक ऐसे और भी है आज सब कुछ है कल थोड़ा कम है और फिर सब कुछ समाप्त यही जीवन की नियति है फिर छोटे-मोटे कष्टों से क्यों घबराना हंसकर उनका सामना करना चाहिए अच्छा यह सोचें कि आपके जीवन का लक्ष्य क्या है अगर अभी  तक इस पर विचार नहीं किया तो अब कर क्योंकि हमें अपने जीवन को किस दिशा में आगे बढ़ाना है यह तो पता होना ही चाहिए इससे कर्म के पति का हमेशा बना रहता है मार्गरेट भी इतनी बुढी़ होने के कारण हमेशा खुश है और सही रहती थी।
मदर टेरेसा (२६ अगस्त १९१० - ५ सितम्बर १९९७) जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से नवाज़ा गया है, का जन्म अग्नेसे गोंकशे बोजशियु के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य (वर्त्तमान सोप्जे, मेसेडोनिया गणराज्य) में हुआ था। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने १९४८ में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। इन्होंने १९५० में कोलकाता में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी की स्थापना की। ४५ सालों तक गरीब, बीमार, अनाथ और मरते हुए लोगों की इन्होंने मदद की और साथ ही मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी के प्रसार का भी मार्ग प्रशस्त किया।

मदर टेरेसा
अग्नेसे गोंकशे बोजशियु
MotherTeresa 090.jpg
मदर टेरेसा
जन्म
26 अगस्त 1910
उस्कुब, उस्मान साम्राज्य (आज का सोप्जे, मेसीडोनिया)
मृत्यु
5 सितम्बर 1997 (उम्र 87)
कोलकाता, भारत
राष्ट्रीयता
उस्मान प्रजा (1910–1912)
सर्बियाई प्रजा (1912–1915)
बुल्गारियाई प्रजा (1915–1918)
युगोस्लावियाइ प्रजा (1918–1943)
यूगोस्लाव नागरिक (1943–1948)
भारतीय प्रजा (1948–1950)
भारतीय नागरिक[1] (1948–1997)
अल्बानियाई नागरिक [2] (1991–1997)
व्यवसाय
रोमन केथोलिक नन,
हस्ताक्षर
Mother-teresa-autograph.jpg
१९७० तक वे गरीबों और असहायों के लिए अपने मानवीय कार्यों के लिए प्रसिद्द हो गयीं, माल्कोम मुगेरिज के कई वृत्तचित्र और पुस्तक जैसे समथिंग ब्यूटीफुल फॉर गॉड में इसका उल्लेख किया गया। इन्हें १९७९ में नोबेल शांति पुरस्कार और १९८० में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न प्रदान किया गया। मदर टेरेसा के जीवनकाल में मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी का कार्य लगातार विस्तृत होता रहा और उनकी मृत्यु के समय तक यह १२३ देशों में ६१० मिशन नियंत्रित कर रही थीं। इसमें एचआईवी/एड्स,
मदर टेरेसा  मदर टेरेसा के
जानकारीमदर टेरेसा जिन्हें रोमन कैथोलिक चर्च द्वारा कलकत्ता की संत टेरेसा के नाम से नवाज़ा गया है, का जन्म अग्नेसे गोंकशे बोजशियु के नाम से एक अल्बेनीयाई परिवार में उस्कुब, उस्मान साम्राज्य में हुआ था। मदर टेरसा रोमन कैथोलिक नन थीं, जिन्होंने १९४८ में स्वेच्छा से भारतीय नागरिकता ले ली थी। विकिपीडिया
जन्म: 26 अगस्त 1910, सोप्जे, मकदूनिया(FYROM)
मृत्यु: 5 सितंबर 1997, कोलकाता
पूर्ण नाम: Anjezë Gonxhe Bojaxhiu
पुरस्कार: नोबेल शांति पुरस्कार, ऑर्डर ऑफ़ द स्माइल, अधिक
राष्ट्रीयता: भारतीय, सर्बियाई, उस्मानी, यूगोस्लावियाई

टिप्पणियाँ