फसल का मौसम खुशी की बैसाखी

            फसल का मौसम खुशी की बैसाखी
बैसाखी बैसाखी अप्रैल महीने में मनाया जाता है जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है इस समय गर्मी का आगाज करते इन टीमों के प्रभाव जहां रवि की जाती है जहां की रवि रवि की फसल पक जाती है वहीं खरीफ फसल का मौसम शुरू हो जाता है

सवाल है कि बैसाखी का त्यौहार इतना निशिचत क्यों है?
 हर साल 13 अप्रैल को और कभी-कभी 14 अप्रैल को होता है अधिकांश पूर्व त्योहार मौसम,मोसमी फसल और उनसे जुड़ी गतिविधियों से ही संबंधित है 

भारत में महीनों के नाम नक्षत्रो पर रखे गए है बैसाखी के समय आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है विशाखा नक्षत्र  पूर्णिमा में होने के कारण इस माह को विशाख कहते हैं 

 इस प्रकार वैशाख मास के पहले दिन को बैसाखी कहा गया है और पूर्व के रूप में माना गया है बैसाखी अप्रैल में तब  मनाया जाता है जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है इसी समय सूर्य की किरणें गर्मी का आगाज करती है। इन किरणों के प्रभाव से जहां रबि की फसल पक जाती है वही खरीफ की फसल का मौसम शुरू हो जाता है इस पर्व की धार्मिक और आध्यात्मिक भी काफी है।  लोग देवी देवताओं की पूजा करते हैं पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां बैसाखी के रूप में उल्लास का रंग दिखता है तो उत्तर पूर्वी भारत के आज असम आदि राज्य में बिहू पर्व मनाया जाता है। 
लेकिन जिस कारण बैसाखी को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है वह खालसा पंथ की स्थापना है। खालसा शब्द खालिस  से बना है जिसका अर्थ शुद्ध ,पावन या पवित्र होता है 
गुरु गोविंद सिंह ने सन 1699 इसी दिन आनंदपुर साहब ने खालसा पंच की नींव रखी थी। इसलिए भी बैसाखी पूर्व सूर्य की तिथि के अनुसार मनाया जाने लगा ।पंथ की स्थापना का उद्देश्य समाज को शासकों के अत्याचारों से मुक्त कर उनके जीवन को श्रेष्ठ बनाना था
 सिख पंथ के प्रथम गुरु नानकदेव ने भी वैशाख माह की आध्यात्मिक साधना की दृष्टि से काफी प्रशंसा की है इसलिए पंजाब और  हरियाणा क्षेत्रों में बैशाखी मनाने के आध्यात्मिक सहित तमाम अन्य कारण भी हैं ।
गुरु गोविंद सिंह गुरु के बलिदान के बाद, धर्म की रक्षा के लिए वैशाखी के दिन अलग-अलग जातियां, धर्म और क्षेत्रों से चुनकर पंच प्यारो को अमृत से छकाया वही हिंदू संप्रदाय के लोग इस नव वर्ष के रूप में भी मानते हैं  में भी मनाते हैं इस दिन स्नान आदि लगाकर पूजा की जाती है कतिपय पोराणिक ग्रंथों के अनुसार ,भगीरथ  कठोर तप के बाद देवी गंगा को धरती पर उतारने में इसी दिन कामयाब हुए थे 

इसलिए लोग पारंपरिक रूप से गंगा स्नान को भी पवित्र मानते हैं वह देवी गंगा की स्तुति करते हैं ज्योतिष की दृष्टि से भी बैसाखी को शुभ और मंगलकारी माना गया है इस दिन विशाखा महीने की शुरुआत भी मानी जाती है

वहीं सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने से इसे मेष संक्रांति भी कहते हैं। जिस प्रवर्तन के लिए बैसाखी तमाम पर्व -त्यौहारो  का सिरमोर बना ,वह गुरु गोविंद सिंह द्वारा स्वधर्म और स्वराष्ट्र की रक्षा के लिए। सन्त और  सिपाही के समन्वय की अनूठी कल्पना हैं। 
शियौं के एक हाथ में माला और दूसरे  हाथ में तलवार पकडाकर मानवता की रक्षा के प्रयोग
   गुरु गोविंद सिंह का शुरू का नाम है गोविंद राय था उनका जन्म 1666 में पौष सुदी सप्तमी का पटना शहर में हुआ उनके जन्म के समय गुरु तेग बहादुर असम में। बाद में पंजाब लोटने पर उन्होने
 परिवार को भी बुला लिया । यहीं उनकी शिक्षा -दीक्षा हुई। 
 गुरु तेग बहादुर जिस समय शहीद हुए थे, उस समय गोविंद सिंह सिर्फ 15 वर्ष के थे इस घटना ने उन्हें रतन जोर दिया      शहीद हुए थे इस घटना ने उन्ह झकझोर दिया  वे इस बात को जानते थे कि  लोगों को शासकों के अत्याचारो से मुक्ति दिलाने के  लिए शक्ति से ज्यादा लोगों का अवसाद दूर करना और उनमें नैतिक बल भरना जरूरी है इस उद्देश्य के लिए उन्होंने सेना को धार्मिक रूप देने का निशचय किया गुरु गोविंद सिंह ने दृढ़ता और  बुद्धिमान से यह काम किया




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